राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो रहा है. संसद में सोमवार को उनको विदाई दी गई. इसी के साथ उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू 10 अगस्त को अपना पद छोड़ देंगे और उनके स्थान पर जगदीप धनखड़ 11 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेकर कार्यभार संभालेंगे.
हिंदी के प्रति वेंकैया नायडू का रहा विशेष लगाव
पीएम मोदी ने राज्य सभा में सभापति वेंकैया नायडू की विदाई के मौके पर उनकी सराहना करते हुए कहा, अगर हमारे पास देश के लिए भावनाएं हो, बात कहने की कला हो, भाषा विविधता में आस्था हो तो भाषा, क्षेत्र हमारे लिए कभी दीवार नहीं बनती है. यह उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सिद्ध किया है. गौरतलब हो जब देश के 13वें उपराष्ट्रपति के बतौर उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित समारोह में पद की शपथ ली थी तो शपथ ग्रहण समारोह में एक बात यह भी खास रही थी कि वेंकैया नायडू ने हिंदी में शपथ ली थी. इससे भी हिंदी के प्रति उनकी विशेष आस्था प्रकट होती है.
दुर्गम रास्तों से तय की राजनीतिक सफलता की यात्रा
जी हां, कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व रहा है मुप्पवरपु वेंकैया नायडू का. अगर उनकी राजनीतिक सफलताओं को देखें तो कहा जा सकता है कि नायडू बहुत साधारण जीवन जीने से लेकर एक लंबा राजनीतिक सफर पूरा कर चुके हैं. राजनीतिक गलियारों में उनके बारे में कहा जाता है आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के गांव चवथापालम में जन्म लेने वाला एक बालक किसी दिन देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद को सुशोभित करेगा यह केवल नियति को पता था. प्रकृति ने उस दुर्गम रास्ते को बड़े जतन से कांटों के बीच तैयार किया. राजनीति में कइयों के लिए प्रेरणा, प्रमाण और उदाहरण बनने वाले देश के उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू की अब तक की यात्रा कैसे रही आइए एक नजर डालते हैं…
छात्र राजनीति से उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर
आंध्र प्रदेश से नायडू ने छात्र राजनीति से केंद्रीय मंत्री बनने तक का सफर तय किया और इन सभी कड़ियों को पार करते हुए देश के उपराष्ट्रपति भी बने. उनकी सफलता इतनी बड़ी रही है कि वे इस यात्रा में कई प्रतिष्ठित पदों पर भी रहे. देश के 13वें उपराष्ट्रपति चुने जाने से पहले वे भारत सरकार के अंतर्गत शहरी विकास, आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन तथा संसदीय कार्य मंत्री थे.
निजी और प्रारंभिक जीवन
वेंकैया नायडू का जन्म 1 जुलाई 1949 में आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में हुआ था. वे कभी कॉन्वेंट स्कूल नहीं गए, ग्रामीण स्कूल में की पढ़ाईअपनी शिक्षा के संबंध में खुद उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू एक बार यह बता चुके हैं कि वे कभी कॉन्वेंट स्कूल नहीं गए बल्कि उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रामीण स्कूल से प्राप्त की. उस समय उनके परिवार में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी नहीं था. तीन किलोमीटर पैदल जाकर स्कूल जाना और वहां मन लगाकर पढ़ाई करने के बाद घर वापस आना उनके बचपन की पढ़ाई का हिस्सा रही है. उस समय बिजली भी नहीं थी. ऐसे मुश्किल हालातों में पढ़ लिखकर वेंकैया नायडू अपने जीवन में आगे बढ़े.
राजनीतिक जीवन
वेंकैया नायडू की पहचान हमेशा एक आंदोलनकारी के रूप में की गई वे 1972 में जय प्रकाश आंदोलन के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए थे. छात्र जीवन में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकालीन संघर्ष में हिस्सा लिया. वे आपातकाल के विरोध में सड़कों पर उतर आए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. 29 साल की उम्र में 1978 में पहली बार वे उदयगिरि से विधायक बने. वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी बने. आपातकाल के बाद वे 1977 से 1980 तक वे जनता पार्टी के युवा शाखा के अध्यक्ष रहे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय प्रवक्ता और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली थी.
2002 से 2004 तक उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का उत्तरदायित्व निभाया. अपनी क्षमताओं और गुणों के कारण वे 1973-74 की अवधि में आंध्र विश्वविद्यालय की छात्र यूनियन के प्रमुख रहे. वे खुद छात्र राजनीति में सक्रिय रहे यही कारण रहा कि वेंकैया नायडू ने देश के युवा शक्ति पर फोकस किया. उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने अपने अधिकतर कार्यक्रमों में देश की युवा पीढ़ी को ही प्रोत्साहित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया.
वर्ष 1993 सितंबर, 2000 के दौरान के पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, सचिव, भाजपा संसदीय बोर्ड, सचिव, भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति, भाजपा के प्रवक्ता के तौर पर सक्रिय रहे. 1998 के बाद राज्यसभा के लिए कर्नाटक से तीन बार चुने गए. 30 सितंबर 2000 से 1 जुलाई 2002 तक नायडू भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री रहे और बाद में 1 जुलाई 2002 से 5 अक्टूबर 2004 तक वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अप्रैल 2005 के बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी बनाया गया. 26 मई 2014 से शहरी विकास और संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री के तौर पर उन्होंने भाजपा के अग्रणी नेताओं में स्थान पाया.