आज ही के दिन 1975 में देश में इमरजेंसी (आपातकाल) लगाने की घोषणा की गई थी. आज आपातकाल के 47 साल पूरे हो चुके हैं. इमरजेंसी के दिनों में भारत को क्या कुछ नहीं देखना पड़ा था. ऐसे में कोई इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के उन जख्मों को नहीं भूल सकता. 26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत के लोगों को इमरजेंसी में अत्याचारों का सामना करना पड़ा.
आजाद भारत का यह सबसे विवादास्पद काल
यह सत्य है कि इमरजेंसी ने भारत में कई ऐतिहासिक घटनाओं को भी जन्म दिया. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में इमरजेंसी की घोषणा की थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास का यह सबसे विवादास्पद काल है क्योंकि इमरजेंसी में चुनाव ही नहीं, नागरिक अधिकार तक स्थगित कर दिए गए थे.
इंदिरा के इस फैसले के कारण देश को इमरजेंसी से गुजरना पड़ा
6 जून की सुबह समूचे देश ने आकाशवाणी पर इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति ने इमरजेंसी की घोषणा की है, लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. इससे पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में 25 जून को हुई रैली की खबर पूरे देश में न फैल सके इसके लिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई थी. रात को ही इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आर.के. धवन के कमरे में बैठकर संजय गांधी और ओम मेहता ने उन लोगों की सूची तैयार की, जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था.
इमरजेंसी की मूल जड़ में था 1971 का लोकसभा चुनाव
दरअसल, इमरजेंसी की मूल जड़ में 1971 का लोकसभा चुनाव था. इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था. चार साल बाद राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी. 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और राजनारायण को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था.
इंदिरा ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का किया दुरुपयोग
राजनारायण की दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया. अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया. इस फैसले के बावजूद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. तब कांग्रेस ने बयान जारी कर कहा था कि इंदिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है. इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्ष को भारी विजय मिली. इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं.
इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 25 जून की आधी रात इमरजेंसी लागू करने की घोषणा कर दी गई. 26 जून को आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने यह भी कहा था- ‘जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी.’ इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया. सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया.
1 लाख से ज्यादा लोगों को जेलों में डाला गया
मीसा और DIR के तहत देश में 1 लाख से ज्यादा लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया. देश के जितने भी बड़े नेता थे, सभी सलाखों के पीछे डाल दिए गए. जेलें राजनीतिक पाठशाला बन गईं. एक तरफ नेताओं की नई पौध राजनीति सीख रही थी. दूसरी तरफ देश को इंदिरा के बेटे संजय गांधी अपने दोस्त बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल और ओम मेहता की तिकड़ी के जरिए चला रहे थे. संजय गांधी ने मीडिया पर सरकार की इजाजत के बिना कुछ भी लिखने-बोलने पर पाबंदी लगा दी, जिसने भी इनकार किया उसे जेल में डाल दिया गया.
पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई
एक तरफ देशभर में सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर जुल्म हो रहा था तो दूसरी तरफ संजय गांधी ने देश को आगे बढ़ाने के नाम पर पांच सूत्री कार्यक्रम परिवार नियोजन, दहेज प्रथा का खात्मा, वयस्क शिक्षा, पेड़ लगाना, जाति प्रथा उन्मूलन पर काम करना शुरू कर दिया था. सुंदरीकरण के नाम पर संजय गांधी ने एक ही दिन में दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को साफ करवा डाला. पांच सूत्री कार्यक्रम में सबसे ज्यादा जोर परिवार नियोजन पर रहा. लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई. 19 महीने के दौरान देशभर में करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई.
लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक
19 महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपनी गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हुआ. इसी चलते 18 जनवरी, 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया. 16 मार्च को हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों ही हार गए. इसी के साथ 21 मार्च को इमरजेंसी तो खत्म हो गई लेकिन वह अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गई.