नोएडा: भारत मे 6.5 करोड़ से भी अधिक लोग ऐसे हैं जिन्हें या तो कम सुनाई देता है अथवा बिल्कुल भी सुनाई नहीं देता. इतनी बड़ी जनसंख्या का इस समस्या के चपेट में आने के बावजूद, इसकी पहचान और इलाज़ में 6 साल की देर होती है. इलाज में देरी की वजह से लोगों में तमाम तरह की मानसिक बीमारियां एवं अवसाद उत्पन्न होते हैं. भारत में हर साल लगभग 6 लाख मशीनें बिकती है, जिसका सीधा अर्थ यह है लगभग 99 प्रतिशत से अधिक की आबादी इलाज से महरूम रहती है और उनमे डिमेंशिया व अवसाद जैसी समस्याओं का खतरा बना रहता है.
स्टारकी हेयरिंग टेक्नोलॉजी के चीफ इनोवेशन ऑफिसर मि. डेव फ्रैबी कहते हैं कि कान से सुनाई न देने की समस्या से ग्रसित व्यक्ति को इसे समझने और एक प्रोफेशनल की सहायता लेने में कम से कम 4 से 6 साल लग जाते हैं. इस समस्या को पहचानना दुनिया भर में एक बड़ा विषय बना हुआ है. जो लोग इस समस्या से पीड़ित हैं उन्हें नकारात्मक विचार, मानसिक तनाव सहित अवसाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. मि. डेव फ्रैबी आजकल ‘Evolv AI’ लॉन्च करने के लिए भारत के दौरे पर हैं.
‘Evolv AI’ नामक नई मशीन के बारे में जानकारी देते हुए फ्रैबी बताते हैं कि यह उपकरण न केवल कम सुनाई देने की समस्या का निराकरण करेगा, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहतर कार्य करेगा. यह मशीन इस बात की भी जानकारी देगी कि आप आज कितने कदम चले हैं, या आप और लोगों के साथ बातचीत के माध्यम से जुड़े हैं. इसके अलावा यदि इसे पहनने वाला व्यक्ति गिर पड़ता है तो यह मशीन उस व्यक्ति के करीबी तीन लोगों को उनके मोबाइल पर मैसेज भेजकर व्यक्ति के गिरने की जानकारी देती है. आज बाजार में कान की बहुत सी मशीनें उपलब्ध हैं और यह मशीने इस समस्या से ग्रस्त लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बन गयी हैं. इन मशीनों के बेहतर बनाने में AI और मशीन लर्निंग का बड़ा हाथ है.
स्टारकी हियरिंग टेक्नोलॉजी के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री अखिल चौहान कहते हैं कि हम इस समस्या को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों सहित मेडिकल प्रोफेशनल व अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. कंपनी आम लोगों में कान से संबंधित समस्याओं को लेकर उनके दृष्टिकोण में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है. इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों को उम्मीद है कि आगामी 1 अक्टूबर को सरकार इस विषय में एक पॉलिसी लेकर आ रही है जिसमे मशीनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं.
इसके साथ ही चौहान बताते हैं कि यह उपकरण छोटा होने के बावजूद प्रति घंटे 55 मिलियन गणना करने में सक्षम है. यह उपकरण आस-पास की आवाजों को ध्यान में रखते हुए अनावश्यक शोर को कम करके जरुरी आवाज़ को बेहतर सुनाता है. उनका कहना है कि इस नई तकनीक से बाहरी शोर में लगभग 40 प्रतिशत तक की कमी आती है जिससे सुनने वाले को जरुरी आवाज स्पष्ट सुनाई देती है.
डॉ सुगाता भट्टाचार्जी, डॉक्टर ऑफ ऑडियोलॉजी, स्टारकी, कहते हैं कि कुछ राज्यों ने इस समस्या को लेकर निदान के लिए OI (ओटो ध्वनिक उत्सर्जन) परीक्षण आयोजित करना शुरू कर दिया है. यह परीक्षण उन बच्चों के लिए अनिवार्य किया गया है जो बच्चे सुनवाई परीक्षणों में जवाब देने में सक्षम नहीं हैं. “यदि बच्चों में प्रारंभिक अवस्था में ही इन मशीनों का उपयोग किया जाता है तब यह उन्हें पूरी तरह से सुनाई देने की क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है. यदि बच्चों में सुनाई देने हेतु किसी भी प्रकार की समस्या है तब इन उपकरणों का उपयोग न करने पर उनमें आत्मविश्वास की कमी के साथ साथ अवसाद, डिमेंशिया व मानसिक तनाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं.