इस्लामी शिक्षा के केन्द्र आजमगढ़ में दक्षिण भारतीय वैष्णव साहित्यकार डा. रागेय राघव के नाम शोध संस्थान की स्थापना की घोषणा कर योगी आदित्यनाथजी ने सबको चौंका दिया. आह्लादमय लगा. दशकों से कोसल राज्य में यह दुर्वासा ऋषि की तपोभूमि पाकिस्तान-समर्थकों का अड्डा रहा हैं. दो जनरल: मियां परवेज मुशर्रफ के वालिद और जनरल मिर्जा अस्लम बेग (पाकिस्तानी सेना का मुखिया) यही के थे. आतंकवाद के उत्पाद का कारखाना यही रहा. याद कीजिये बाटला हाउस में आतंकियों से मुठभेड़ के विरोध में आजमगढ़ से जब पूरी ट्रेन भरकर के प्रदर्शनकारी दिल्ली गये थे. स्वयं योगीजी पर जानलेवा हमला यहीं हुआ था.
पुस्तक ‘‘ए सैफ्रन सोशलिस्ट‘‘ (गेरूआ समाजवादी) में इस षडयंत्र का विवरण है. इसके अनुसार हिंदू युवा वाहिनी की अगुआई में कई हिंदूवादी संगठनों ने ऐलान किया कि वे सब आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ एक रैली का आयोजन करेंगे. इस रैली में योगी आदित्यनाथ मुख्य वक्ता थे. सितंबर, 7, 2008 की सुबह गोरखनाथ मंदिर से 40 वाहनों का काफिला रवाना हुआ. चूंकि आजमगढ़ में कुछ हिंसा होने का अंदेशा था, इसलिए योगी की टीम ने तैयारियां की थीं. काफिले में योगी की लाल रंग की एसयूवी सातवें नंबर पर थी. दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर जब काफिला टकिया (आजमगढ़ से थोड़ा पहले) से गुजर रहा था तो एक पत्थर काफिले की सातवीं गाड़ी पर आकर लगा. इसके बाद चारों तरफ से पत्थरों की बारिश शुरू हो गई. मगर योगीजी बच गये.
इस संदर्भ में मुख्यमंत्री द्वारा इस ‘‘आतंकगढ़‘‘ को सभ्यता के दायरे में लाने का सम्यक प्रयास जारी है. यूं तो कई मूर्घन्य साहित्यकार पूर्वांचल से रहे है. मगर दक्षिण भारतीय रांगेय राघव की विशिष्टता ने योगीजी को प्रभावित किया है. रांगेय राघव के नाम पूर्वांचल के कोने में स्मृति केन्द्र निर्मित करना भारत के एकीकरण हेतु नीक प्रयास है. तिरूपति-तिरूमला पर्वत श्रृंखलाओं में पले इस तमिल-तेलुगुभाषी साहित्यकार का हिन्दी शीर्ष लेखक बनना स्वयं में एक अजूबा है. इस दक्षिणात्य वैष्णव का उत्तर प्रदेश को अपनाना ही एक संगम जैसा है. हालांकि वे अपने शैक्षणिक क्षेत्र आगरा को विश्व का श्रेष्ठतम नगर मानते रहे.
आजमगढ़ में रांगेय राघव शोध के नाम केन्द्र की स्थापना की घोषण कर योगी आदित्यनाथ जी ने इस आंध्र प्रदेश के साहित्यकार का ऋण उतार दिया है. रांगेय राघव जी ने अपनी पीएचडी की है बाबा गोरखनाथ पर. धोतीकुर्ता पहने, ऊपर से भगवा शाल ओढ़े तेलुगुप्रांत के इस 25-वर्षीय वैष्णव ने नाथ संप्रदाय के ग्यारहवीं सदी में प्रणेता रहे योगी गोरखनाथ पर अपनी डाक्टरेट थीसिस लिखी है. उन्होंने शांतिनिकेतन के सुरम्य, शांत वातावरण में वास कर अपना लेखन-पाठन किया. उनकी कलम जादुई थी. उनके अग्रज यूपी के पीसीएस अफसर थे. मगर राघव को माता कनकवल्ली से ही षैक्षिक और धार्मिक आस्था विरासत में मिली थी.
गोरखनाथ के जीवन और साहित्य पर उन्होंने प्रचुर मात्रा में सामग्री संकलित की थी. गोरखनाथ के व्यक्तित्व का विश्लेषण और उस काल के सामाजिक परिवेश की भौतिकवादी व्याख्या इस शोध के महत्वपूर्ण अंश है. रांगेय राघव ने गोरखनाथ के व्यक्तित्व को आत्मसात किया था. मत्सयेंद्रनाथ योगी और भोगी थे जबकि गोरख बैरागी. साधना के लिये बैरागी रूप के चयन में गोरखनाथ योगी है. गोरखनाथ के समान ही रांगेय राघव का व्यक्तित्व भी भव्य और सुंदर था. गौरवर्ण, उन्नत व दीप्त भाल, रोमनों जैसी सुघड़ नासिका, पतले और तराशे हुए होठों और बड़ी-बड़ी आंखों में कभी व्यंग्य भरी मुस्कान, चुटकी लेती शरारत, कभी कोमल, स्निग्ध और ममताभरी मुस्कराहट नाचती और झांकती रहती थी. साधनामूलक अहंकार से सामयिक रचनाकारों और आलोचकों को चुनौती देते हुए गोरखीय व्यक्तित्व में एक अजीब आकर्षण था. गोरखनाथ और उनके युग के माध्यम से रांगेय राघव ने मध्यकालीन संस्कृति और इतिहास पर व्यापक अध्ययन और मनन किया था जो उनकी कई कृतियों में व्यंजित हुआ है.
उनके नाम की विलक्षणता भी दिलचस्प है. उनका पूरा नाम जैसा दक्षिण में होता है, बड़ा लंबा था: तिरूमलाई नम्बकम वीर राघव आचार्य. वे रामानुज संप्रदाय के थे. मगर उत्तर भारत (ब्रजभूमि) में बसते समय पूरा नाम केवल दो शब्दों में ही सीमित कर दिया. पिता के नाम अनिवार्यतः रखा ही जाता है. अतः रांगेय (रंगाचारी) रखा. कौतेय (कुंतीपुत्र) की शैली में. अपने नाम से आचार्य काट कर राघव मात्र रख दिया.
रांगेय राघव यूं तो चालीस से कम थे जब उन्होंने देह त्यागा, किंतु इतने अल्प समय में ही 150 कृतियों को तैयार किया. आद्यैतिहासिक विषय पर लिख रहे होते थे, तो शाम को आप उन्हें उसी प्रवाह से आधुनिक इतिहास पर टिप्पणी लिखते थे. उन्होंने उत्तर भारत पर सांस्कृतिक विजय पायी. रांगेय राघव तिरूपति के पुजारी परिवार से थे और भरतपुर (राजस्थान) के महाराज ने उनके पूर्वजों को अपने यहां आमंत्रित किया था. हिन्दी में द्रविड संस्कृति का विस्तार से विश्लेषण करने वालो में अपने किस्म के इस पहले लेखक ने शिव की अवधारण के बारे में कहा: ‘‘महादेव पर यद्यपि अनेक मत हैं किंतु मुझे स्पष्ट लगता है कि वह योग का देवता द्रविड़ संपत्ति ही थी, दक्षिण में ही तांडव हुआ था. शिव के लिंग की पूजा की आर्यों ने शिश्न पूजा कह कर निंदा की थी. बाद में उन्होंने स्वयं इसे स्वीकार कर लिया.
रांगेय राघव भारत के कम्युनिस्ट साहित्यकारों द्वारा हड़प जाने से बचे रहे. उन पर प्रगतिवादी का ठप्पा लगाकर कुछ वामपंथियों ने उन्हें अपना हमसफर दर्शाया. मगर रांगेय राघव कभी भी प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य नहीं रहे. दूरी बनाये रखा. बल्कि उनसे और आगरावासी वामपंथी डा. रामविलास शर्मा से टकराव बना ही रहा. डा. शर्मा घोषित कम्युनिस्ट रहे. अन्य कथित जनवादी साहित्यकारों की भांति रांगेय राघव ने कभी भी सोवियत रूस के परितोष को नहीं स्वीकारा. जबकि ये वामपंथी लेखक तो रूस के वजीफों पर पलते रहे थे. अतः रांगेय राघव शुद्ध राष्ट्रवादी रहे. पुरातन इतिहास के अध्येता रहे.
योगीजी ने इस सुदूर दक्षिण भारतीय को पूर्वांचल में स्थापित कर भारत राष्ट्र को जोड़ने का कम किया है. उन्हें यूपी सरकार का दो बार पुरस्कार शिक्षाविद् बाबू संपूर्णांनन्द के मुख्यमंत्रित्वकाल में मिला. महात्मा गांधी पुरस्कार (1966) भी मिला. लेनिन अथवा स्तालिन वाला कभी भी नहीं. तो कहां से वे प्रगतिशील, वामपंथी हो गये ?
(उपरोक्त विचार सीनियर जर्नलिस्ट के.विक्रम राव जी के हैं, आप देश-दुनिया के नामी न्यूज प्लेटफार्म पर अपने विचार लिखते रहते हैं.)