आसान नहीं रहा द्रौपदी मुर्मू के लिए रायसीना हिल्स तक का सफर

देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पहली जनजातीय महिला हैं जो इस शीर्ष पद पर पहुंची हैं.

द्रौपदी मुर्मू ने देश की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई को शपथ ली. इससे पहले निर्वाचन अधिकारी ने राष्ट्रपति चुनाव परिणाम की घोषणा करते हुए कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के मतदान में कुल 4754 मत पड़े, जिनमें से 4701 वैध और 53 अवैध पाए गए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के लिए एक उम्मीदवार को पांच लाख 28 हजार 491 मत मूल्य की जरूरत थी. मुर्मू को डाले गए कुल वैध मत 4701 में से प्रथम वरीयता के 2824 मत मिले जिनका मूल्य 6 लाख 76 हजार 803 है. उनके प्रतिद्वंदी विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को प्रथम वरीयता के 1877 मत मिले जिनका मूल्य तीन लाख 80 हजार 177 है. इस प्रकार मुर्मू द्वारा हासिल किए गए प्रथम वरीयता के मत विजय के लिए जरूरी मत संख्या से अधिक रहे.

ओडिशा के एक छोटे से गांव से शुरू हुई कहानी

उल्लेखनीय है कि देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पहली जनजातीय महिला हैं जो इस शीर्ष पद पर पहुंची हैं. झारखंड की पूर्व राज्यपाल रहीं मुर्मू ओडिशा के सुदूर जनजातीय इलाके से आती हैं. ओडिशा के एक छोटे से गांव बैदापोसी से निकलकर दिल्ली के रायसीना हिल्स के शिखर तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था. इस यात्रा में उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन से लेकर राजनीतिक जीवन के सफर में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन संघर्ष पथ पर बिना विचलित हुए मुर्मू आगे बढ़ती रहीं और देश के सर्वोच्च पद तक पहुंची है.

आदिवासी परिवार में जन्मी

मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 में ओडिशा के एक आदिवासी परिवार में मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव से ही प्राप्त की. उसके बाद उन्हें ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर शहर भेजा गया. घर की आर्थिक हालात ठीक नहीं थी लेकिन किसी तरह मुर्मू ने अपनी पढ़ाई पूरी की. ग्रेजुएट होने के बाद मुर्मू ने एक टीचर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. बाद में उन्होंने ओडिशा के सिंचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक यानि क्लर्क के पद पर भी नौकरी की. वर्ष 1997 में शिक्षिका की भूमिका छोड़कर राजनीतिक जीवन की शुरुआत की.

रायरंगपुर से रायसीना हिल्स तक का द्रौपदी मुर्मू का सफर

द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. बाद में रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं और नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली तत्कालीन बीजद-भाजपा सरकार में (स्वतंत्र प्रभार) की राज्य मंत्री का दायित्व संभाला. उन्होंने ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का भी दायित्व निभाया.

2015 में बनीं झारखंड राज्य का राज्यपाल

वर्ष 2006 में मुर्मू को भारतीय जनता पार्टी ने ओडिशा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया. वर्ष 2009 में वह रायरंगपुर से भाजपा के टिकट पर पुन: विधायक बनीं. केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद वर्ष 2015 में द्रौपदी मुर्मू को झारखंड राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

व्यक्तिगत जीवन में उथल-पुथल के बाद भी नहीं डगमगाए कदम

व्यक्तिगत जीवन में उथल-पुथल के बाद भी मुर्मू राजनीति में सक्रिय रहीं. मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू के साथ हुई थी. इनकी तीन संतान थी जिसमें दो बेटे और एक बेटी हुए लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही मुर्मू ने पति और अपने दोनों बेटों को खो दिया.

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