Tuesday, November 22, 2022
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    बाल विधवा इस्पाती नेता बनी !

    एक बार 1923 में काकीनाडा कांग्रेस सम्मेलन में वह किशोरी (मात्र 14 वर्ष) खादी प्रदर्शनी के द्वार पर पार्टी कार्यकत्री की ड्यूटी पर तैनात थी. एक दर्शनार्थी को उसने टोका, रोका, क्योंकि उसने टिकट नहीं दिखाया था.

    यह दास्तां है एक कन्या की जो आठ साल की आयु में विधवा हो गयी थी. वह बड़ी होकर भारत की लौह नारी बनी. आज (15 जुलाई 2022) उनकी 113वीं जयंती थी. इस अल्पायु सत्याग्रही को राष्ट्रीय कांग्रेस के कई कर्णधार लोग जानते थे. उनमें महात्मा गांधी विशेष थे. एक बार 1923 में काकीनाडा कांग्रेस सम्मेलन में वह किशोरी (मात्र 14 वर्ष) खादी प्रदर्शनी के द्वार पर पार्टी कार्यकत्री की ड्यूटी पर तैनात थी. एक दर्शनार्थी को उसने टोका, रोका, क्योंकि उसने टिकट नहीं दिखाया था.

    संचालकों ने उस किशोरी को डांटा कि वह दर्शक को नहीं पहचानती? उसका संक्षिप्त, नपातुला जवाब था, ”वे बेटिकट थे. उनके जेब में खरीदने के लिये दो रुपये भी नहीं थे. कैसे जाने देती?” खैर संचालकों ने दो रुपये का टिकट खरीदकर दे दिया. तभी वह व्यक्ति प्रदर्शनी में प्रवेश कर पाया. यही व्यक्ति ठीक तीस वर्ष वर्ष बाद नयी दिल्ली के विवाह पंजीकरण कार्यालय में उस युवती (तब तक वह 44—वर्षीया थी) की दूसरी शादी के खास साक्षी रहे. नाम था जवाहलाल नेहरु, तब प्रधानमंत्री. पर थे उनके ही वित्तमंत्री चिंतामणि द्वारकानाथ देशमुख. और वधू जिसकी दूसरी शादी थी स्वयं दुर्गाबाई राव जो तब तक विख्यात हो चुकीं थीं. वे आजाद भारत की संविधान सभा की मद्रास प्रांत से निर्वाचित सभा की सदस्या थी. अध्यक्ष मंडल की एकमात्र महिला सदस्या भी रहीं. बाद में योजना आयोग (आज नीति आयोग) की सदस्या थी. पद्मविभूषण (द्वितीय सर्वोच्च पुरस्कार) से नवाजी गयीं. स्वतंत्रता सेनानी के नाते नमक सत्याग्रह से प्रारंभ कर दुर्गाबाई तीन बार ​ब्रिटिश जेलों में रहीं. प्रमुख गांधीवादी सत्याग्रही थीं. महिला सशक्तिकरण अभियान के हरावल दस्ते में थीं.

    प्रथम दृष्टया देशमुख दंपत्ति की यह बेमेल जोड़ी लगती थी मुम्बई के मराठी कायस्थ चिंतामणि देशमुख, इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) के शीर्ष अफसर, रिजर्व बैंक के सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी गवर्नर, ब्रिटिश राज के चहेते लार्ड और मान्य आला नौकरशाह, नेहरु काबीना के तृतीय वित्त मंत्री आदि. दुर्गाबाई रहीं एकदम विषम, विपरीत. गांधीवादी स्वाधीनता सेनानी, तेलुगुभाषी विप्र परिवार की, प्रथम पति खो चुकी थीं. इन दोनों विपरीत दशावालों का विवाह भी अजूबा था. अपनी आत्मकथा में विवाह प्रस्ताव वाले वाकये का मधुर वर्णन दुर्गाबाई करती हैं. लुटियंस की नयी दिल्ली की विशाल कोठी में गंधसफेदा (युकेलिप्टस) वृक्षों से आच्छादित उद्यान में कांग्रेसी वित्त मंत्री चिंतामणि से उन्हीं के मंत्रालय की अधिकारी दुर्गाबाई कुछ विचारार्थ आयीं. तभी उन्हें सुगंधित वृक्ष तले ले जाकर एक तने पर संस्कृत में देशमुख ने कहा : ”मुझसे शादी करोगी ?”. तो वे मुस्करायीं. तब चिंतामणि 57 वर्ष के विधुर थे, दुर्गाबाई 47—वर्ष की विधवा थीं. उनकी पहली पत्नी (अंग्रेज) रोजीना आर्थर बिलकास का चार वर्ष पूर्व ही निधन हो गया था. एक पुत्री प्रिमरोस थी. विवाह का रुमानी प्रसंग दो वयस्क विधुर—विधवा के पाणिग्रहण का बड़ा अलबेला रहा. बौद्धिक अधिक था.

    दुर्गाबाई के जीवनकाल के सत्तर वर्ष कई अर्थों में घटना—प्रमुख रहे. चालुक्य साम्राज्य की राजधानी रहे राजमहेन्द्रनगरम (राजमंड्री) में (15 जुलाई 1909) जन्मी दुर्गाबाई का विवाह आठ साल की आयु में हुआ. सामंती दौर था. वह शीघ्र विधवा हो गयी. पर उन्होंने बाल मुंडवाने की प्रथा का पुरजोर विरोध किया. उनके पिता बीबीएन रामाराव ने स्वीकारा कि उनका यह कृत्य भयंकर भूल था. तभी से किशोरी दुर्गाबाई ने संकल्प किया कि बाल विवाह, विधवा का मुंडन, पुनर्विवाह की मनाही इत्यादि के विरुद्ध वह संघर्ष करेंगी. उसी दौर में महात्मा गांधी आंध्र आये. उस समय गांधीजी के सेवकों को पानी पिलानेवाला भी कैद कर लिया जाता था. दुर्गाबाई ने स्वयंसेविका की टोली बनायी. संघर्ष किया, जेल गयीं. उसके पूर्व महात्मा गांधी के पास सब स्वयंसेविकायें गयीं. पैर छुये तथा गहने दान किये. तरुणी दुर्गाबाई ने अपने स्वर्ण आभूषण भी बापू को दे दिये. गांधी जी उसे अपनी गाड़ी में सभा स्थल पर ले गये. साथ में कस्तूरबा गांधी और प्रभावती (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) भी थीं. दुर्गाबाई को दक्षिण भारतीय हिन्दी प्रचार सभा का दायित्व मिला. उन्होंने लगन से प्रचार किया. तब तक कांग्रेस नेता सी. राजगोपालाचारी राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष थे. मगर 1955 में वे ही धुर हिन्दी विरोधी हो गये. तभी दुर्गाबाई को गांधीजी ने हिन्दी प्रचार कार्य हेतु स्वर्ण पदक दिया.

    विदेशी कपड़ों की होली करने में दुर्गाबाई अग्रिम लाइन में थीं. एक नायाब जनान्दोलन भी चलाया. जो पति अपनी पत्नियों को पीटते थे उनके घर के समक्ष जुलूस निकालाती थीं. नारेबाजी करतीं थीं. दुर्गाबाई को मलाल रहा कि वह अपनी मां के घने काले बाल बचा न पायीं. विधवा को तब मुंडन कर दिया जाता था. कांग्रेसी सत्याग्रही के रुप में दुर्गाबाई ने जेलों में तीन वर्गों में राजनीतिक कैदियों को अलग—अलग वार्डों में रखे जाने का विरोध किया था. सारे सत्याग्रहियों को एक ही वर्ग का कैदी रखने हेतु मनवाया.

    दुर्गाबाई ने मदन मोहन मालवीय जी से प्रभावित होकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एमए (राजनीति शास्त्र) किया. फिर आंध्र में महिलासभा गठित किया. विधवा—पुनर्विवाह, नारी शिक्षा आदि आन्दोलन चलाये. उन्होंने उच्चतम न्यायालय में वकालत की. बापू के हिन्दी भाषणों का तेलुगु अनुवाद किया. दुर्गाबाई को मद्रास हाईकोर्ट का जज बनाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री राजगोपालाचारी ने दिया. नेहरु ने उन्हें प्रथम लोकसभा में लाने का प्रयास किया. इंदिरा गांधी दुर्गाबाई को समाज सेवा में अपना गुरु मानती थी. दिल्ली का वेंकटेश्वर कॉलेज दुर्गाबाई ने स्थापित किया था.

    विडंबना यह है कि दुर्गाबाई को हिन्दीभाषी राज्यों में कम जाना गया. भला हो आकाशवाणी तथा दूरदर्शन का कि ”आजादी के अमृतोत्सव” कार्यक्रम में आज उनके बारे में चर्चा हुयी. अब आगे……?

    (उपरोक्त विचार सीनियर जर्नलिस्ट के.विक्रम राव जी के हैं, आप देश-दुनिया के नामी न्यूज प्लेटफार्म पर अपने विचार लिखते रहते हैं.)

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