उत्तर प्रदेश, राजनीति और राजनीतिक किस्सों का गढ़. इन्हीं किस्सों में से एक किस्सा बीजेपी नेता जगदंबिका पाल से जुड़ा हुआ है. हुआ यह था कि अचानक जगदंबिका पाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन बैठे थे. हालांकि उनका यह कार्यकाल सिर्फ 1 दिन का रहा था.
बात है साल 1998 की, यूपी में तब नया इतिहास लिखा गया जब मायावती जनता दल, दल, किसान कामगार पार्टी, लोकत्रांतिक कांग्रेस, बसपा और अन्य दलों के नेताओं के साथ राजभवन पहुंचीं. उन्होंने राज्यपाल रोमेश भंडारी के कहा हम कल्याण सिंह सरकार के परिवहन मंत्री जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री के रुप में अपना समर्थन देते हैं. तारीख थी 21 फरवरी 1998. मायावती के इस कदम से प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया. सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी में आफरा-तफरी मच गई. लखनऊ के राजभवन से लेकर सीएम हाउस तक पत्रकारों की भीड़ थी तो सड़कों पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेताओं तक की हलचल बढ़ गई.
कल्याण सिंह की सरकार हुई बर्खास्त
सीएम की कुर्सी पर खतरे के बादल मंडरा रहे थे. सत्ता का खतरा भांप तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भागे-भागे राजभवन पहुंचे और बहुमत साबित करने का मौका मांगा. लेकिन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी की रात ही कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया. और जगदंबिका पाल को उत्तर प्रदेश का नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया. नरेश अग्रवाल डिप्टी सीएम बने.
राज्यपाल के खिलाफ आमरण अनशन
राज्यपाल के इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी ने नाराजगी जाहिर की. अगले ही दिन अटल बिहारी वाजपेयी राज्यपाल रोमेश भंडारी के खिलाफ स्टेट गेस्ट हाउस में आमरण अनशन पर बैठ गए. वहीं, दूसरी तरफ राज्यपाल के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई. कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कल्याण सिंह की सरकार को दोबारा से बहाल कर दिया. लेकिन यह सियासी किस्सा यहीं खत्म होने वाला नहीं था.
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
जगदंबिका पाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सर्वोच्च अदालत ने भी तेजी से सुनवाई करते हुए मामले पर 24 फरवरी 1998 को अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने तय किया कि 48 घंटे के भीतर कंपोजिट फ्लोर टेस्ट कराया जाए. नतीजे आने तक कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल दोनों के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरह व्यवहार किया जाए. साथ ही कोर्ट से साफ कि इस बीच दोनों को नीतिगत फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं होगा.
आखिर में कल्याण सिंह को वापस मिली सीएम की कमान
इसके बाद दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने अपना-अपना विश्वास मत पेश किया. जिसमें कल्याण सिंह ने जीत हासिल की. कल्याण सिंह को 225 वोट और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले. कल्याण सिंह को फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी गई. जिसके बाद प्रदेश में उठा यह सियासी तूफान शांत हुआ. तारीख थी 26 फरवरी 1998.