जनकल्याण हेतु स्थापित बंबइया न्यास ”सबरंग” अब बदरंग हो गया है. दंगा पीड़ितों और युवाओं की साक्षरता तथा सेवा के लिये गठित इस एनजीओ (स्वयंसेवी संस्था) का उद्देश्य कभी उच्च तथा उत्कृष्ट था. पर सब रंगीनियों में ही गुम हो गया. न्यायिक तथा शासकीय पड़ताल ने पाया कि वित्तीय अनुदान और सहयोग राशि विलासिता तथा प्रशासनिक खर्चों पर ही खप गयी. यह सरासर अवांछित और नाजायज हुआ. सबरंग न्यास की मालकिन है तीस्ता जावेदमियां सीतलवाड. उन्हें गत सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जीवाड़ा और गलत बयानी का दोषी पाया. अहमदाबाद पुलिस ने सत्र न्यायालय के आदेशानुसार तीस्ता को हिरासत में रखा है. मानव संवेदना का ऐसा निजी और वाणिज्यीय प्रयोग बड़ा दुर्लभ ही है.
फिर यह संबरंग न्यास तथा उसकी ही अनुषांगिक संस्था ”सिटिजन्स फार जस्टिस एण्ड पीस” के कार्यकलापों की विस्तृत जांच हुई. आयव्यय का आडिट भी हुआ. बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां, अनियमितता, जालसाजी, दुरुपयोग तथा गबन पाया गया.
अहमदाबाद पुलिस की रपट के अनुसार सबरंग न्यास द्वारा लगभग एक करोड़ चालीस लाख रुपये की राशि वर्ष 2008 से 2013 के दरम्यान भारत सरकार से फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी. बेजा खर्च हुयी. गुजरात तथा महाराष्ट्र में निर्धन बच्चों तथा गोधरा (2002) दंगे के पीड़ितों पर व्यय करना था. अन्यंत्र चला गया.
तीस्ता जावेदमियां सीतलवाड के इन दोनों न्यासों पर गबन का आरोप लगाया था उन्हीं के पूर्व साथी गुजरात के मियां रईस खान पठान ने. पठान ने खुलासा किया कि तीस्ता ने एकत्रित राशि को बजाये शिक्षा के, सांप्रदायिक जहर फैलाने पर तथा परिपत्र और किताबें मुदित करने पर लगाया. भारतीय दंड संहिता (धारा 403) बेईमानी से संपत्ति कब्जियाना और धारा 406 (अपराधिक विश्वासघात) तथा भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम के तहत तीस्ता पर अभियोग लगाया गया?
पूर्व सहयोगी रईस खान पठान का इल्जाम था कि तीस्ता ने मजहब का सियासत में घालमेल किया. मनमोहन सिंह वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा प्रदत्त 1.4 करोड़ रुपये के अनुदान का गैरवाजिब खर्च किया. केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की छानबीन समिति ने तीस्ता पर सामाजिक तनाव तथा घृणा सर्जाने का आरोप लगाया था. दान हेतु वित्तीय राशि को वसूलने का आरोप लगा. तीस्ता के सबरंग न्यास ने ”खोज” योजना के तहत महाराष्ट्र और गुजरात में शांति स्थापना और विवाद—निवारण हेतु कार्यक्रम रखा था. मगर सारी राशि कर्मियों के वेतन—भत्ते, यात्रा व्यय, वकीलों की फीस तथा राज्य शासन के विरुद्ध अभियान पर ही खपा दिया. नतीजन जांच के बाद केन्द्रीय सरकार ने सबरंग न्यास के आयव्यय में गोलमाल के कारण उसका पंजीकरण निरस्त कर दिया. इसके विरुद्ध सांसद वकील कपिल सिब्बल ने न्यायालय में वाद दायर कर दिया. इसके बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने फोर्ड फाउण्डेशन द्वारा प्रस्तावित 12.5 अरब डॉलर (करीब 84 अरब रुपये) पर रोक लगा दी. मगर इसके पूर्व ही लगभग 1.8 करोड़ रुपये का अनुदान सबरंग फाउंडेशन से ले चुका था.
जांच समिति ने पाया कि दान की अधिकांश राशि शराब, होटल बिल, विदेश (लाहौर) यात्रा आदि पर खर्च हुआ. अर्थात सर्वहारा के कल्याणार्थ यह अनुदान राशि ऐशो—आराम, साड़ियों की खरीददारी, सौंदर्य उपकरणों, सैलानी जैसे खर्चों पर इस्तेमाल हुये. टाइम्स आफ इंडिया (14 फरवरी 2015) में प्रकाशित रपट के अनुसार भारत सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय खण्डपीठ (पटना में शिक्षित न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय तथा नूतलपाटि वेंकट रमण, अधुना प्रधान न्यायधीश) को बताया था कि सबरंग न्यास और जावेदमियां का ”सिटिजंस फार जस्टिस एण्ड पीस” एनजीओ ने प्राप्त करोड़ों रुपयों की अनुदान राशि को मुम्बई हवाई अड्डे की करमुक्त दुकानों से शराब, खरीदने पर, सिनेमा देखने पर, सौंदर्य प्रसाधन पर बहुमूल्य साड़ियों पर, कीमती जूतों पर आदि पर खर्च किया.
पाकिस्तान, इटली, कुवैत, अमेरिका, कनाड़ा, यूरोप आदि की यात्रा पर व्यय किया. जब तीस्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगों पर ”मुस्लिमों का हत्यारा” और सोनिया गांधी के शब्दों में मौत का सौदागर होने के लिये दंडार्थ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, तो तीन जजों की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में लिखा : ”तीस्ता गुजरात को बदनाम करना चाहती थी. याचिकार्थी श्रीमती जाकिया जाफरी को भी तीस्ता ने बयान रटवाया था.” सुप्रीम कोर्ट के सात दशकों के इतिहास में इतना कड़ा और मर्मस्पर्शी निर्णय आजतक नहीं दिखा. तीस्ता को केवल खुन्नस थी और इसीलिये वह गुजरात से प्रतिशोध चाहती थी.
बैंच ने लिखा कि तीस्ता ने फर्जीवाड़ा किया. दस्तावेजों को जाली बनाया. गवाहों से असत्य बयान दिलवाये, उन्हें मिथ्या पाठ सिखाया. पहले से ही टाइप किये बयानों पर गवाहों के दस्तखत कराये। यही बात पर 11 जुलाई 2011 को गुजरात हाई कोर्ट ने भी लिखी थी (याचिका 1692/2011). अन्य आरोप है कि उसने तथा अपने साथी फिरोजखान सैयदखान पठान ने सबरंग न्यास के नाम पर गबन और अनुदान राशि का दुरुपयोग किया. अनुदान की राशि को निजी सुख और सुविधा पर व्यय किया. जजों ने कहा कि सरकारी वकील ने दर्शाया है कि किस भांति तीस्ता और उसके पति ने 420, फर्जीवाड़ा धोखा आदि के काम किये. निर्धन और असहायों के लिये जमा धनराशि को डकार गयी. खुद गुजरात हाईकोर्ट ने इन अपराधियों की याचिका खारिज कर दी और फैसला दिया कि अभियुक्तों को हिरासत में सवाल—जवाब हेतु कैद रखा जाये.
यूं तो सत्र न्यायालय, गुजरात हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय ने तीस्ता को दोषी माना है. अत: उसे प्रारब्ध भोगने को सुनिश्चित कराने का उत्तरदायित्व है, कर्तव्य है, शासन पर. भारत के अन्य फर्जी एनजीओ को सबक दिलाने और चेतावनी हेतु यह कदम अनिवार्य है.
(उपरोक्त विचार सीनियर जर्नलिस्ट के. विक्रम राव जी के हैं, आप देश-दुनिया के नामी न्यूज प्लेटफार्म पर अपने विचार लिखते रहते हैं.)