Monday, November 7, 2022
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    किस बेज्जती का बदला लेने के लिए टाटा ने फोर्ड मोटर्स से खरीद लिए थे लैंड रोवर और जैगवार जैसे ब्रांड्स?

    इंटरनेट पर रतन टाटा के न जानें कितने किस्से और कहानियां तैर रही हैं. इनमें से सबसे मशहूर वह किस्सा है जिममें एक विलायती कार ब्रैंड को खरीदकर टाटा ने अपनी बेज्जती का बदला लिया था.

    भारतीय बिजनेस टायकून रतन नवल टाटा ने अपने जीवन में कई फैसले ऐसे लिए हैं जिसने हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. फिर चाहे वह भारतीय बाजार में आम आदमी के लिए लखटकिया नैनों हो या फिर देश के लिए गए फैसले. इंटरनेट पर रतन टाटा के न जानें कितने किस्से और कहानियां तैर रही हैं. इनमें से सबसे मशहूर वह किस्सा है जिममें एक विलायती कार ब्रैंड को खरीदकर टाटा ने अपनी बेज्जती का बदला लिया था. इंटरनेट की दुनिया में बताया जाता है कि एक बार रतन टाटा फोर्ड मोर्टस के मालिक से मिलने अमेरीका गए थे. जहां उन्हें बड़ी बेज्जती का सामना करना पड़ा था.

    पर्सनल सेगमेंट की कारों में टाटा को हो रहा था नुकसान

    चलिए तो किस्सा शुरू कर करते हैं. बात है 90’s के दौर की. भारत में लिबरलाइजेशन की शुरूआत हुई थी. कमर्शियल गाड़ियों के सेगमेंट में टाटा मोर्टस पहले से ही मार्केट लीडर थे. कुछ कंपनियां ही उस समय टाटा को टक्कर दे सकती थीं. लेकिन असली गेम पर्सनल व्हीकल के सेगमेंट में था. जहां तगड़ा मुनाफा, मार्जिन तगड़े थे. इसलिए इस सेगमेंट में कॉम्पिटीशन भी कठिन था. वैसे तो टाटा ने सूमों और सफारी से भारतीय मार्केट में शरुआत की. 1998 में टाटा ने पहली स्वदेशी भारतीय कार, इंडिका को भारत में लांच किया. इस कार के साथ टाटा ग्रुप पर्सनल कार के मार्केट में उतर गया. लेकिन कुछ ही सालों में टाटा को पर्सनल सेगमेंट की कारों में ठीक-ठाक नुकासन होने लगा.

    फोर्ड ने की टाटा की बेज्जती

    उस समय टाटा मोटर्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रह चुके प्रवीण काडले बताते हैं कि पर्सनल कार सेगमेंट में कंपनी को काफी नुकसान हुआ था. इस दौरान कुछ लोगों ने चेयरमैन रतन टाटा को सलाह दी की पैसेंजर कार सेगमेंट को बेच दें. खबर मार्केट में आई की टाटा अपने इस सेगमेंट को बेचना चाहती है. तब फोर्ड मोटर्स ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई. दोनों कंपनियों की पहली बैठक बॉम्बे हाउस स्थित टाटा के हेडक्वार्ट में हुई. जहां सब कुछ ठीक-ठाक रहा.

    लेकिन इस डील से जुड़ी एक और मीटिंग डेट्रॉइट, मिशगिन अमेरिका में होनी थी. रतन टाटा और प्रवीण इस मीटिंग में हिस्सा लेने पहुंचे. तीन घंटे से अधिक समय तक यह मीटिंग चली. मीटिंग में दोनों के साथ बड़ा अजीब बर्ताव किया गया. फोर्ड के चेयरमैन ने टिप्पणी करी कि टाटा को कार मैन्युफैक्चरिंग के बारे में कुछ पता नहीं है और उन्हें इसकी शुरुआत ही नहीं करनी चाहिए थी. फोर्ड ने यहां तक कह दिया कि टाटा के पर्सनल कार सेगमेंट को खरीद कर वो उन पर अहसान करेंगे. अंत में बात संभवतः पैसों को लेकर अटक गयी थी. इसलिए टाटा लौट आए और डील पूरी नहीं हो पाई.

    फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुंची

    इस डील के बाद 2001 में प्रवीण काडले को टाटा मोटर्स का एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनाया गया. अगले कुछ सालों में टाटा ने वह कर दिखाया जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. टाटा कुछ ही सालों में देश की बड़ी व्हीकल कंपनी बन गई. लेकिन लक्जरी कार सेगमेंट में टाटा का प्रवेश करना अभी बाकी था. साल 2007 में एक खबर सामने आई जिसने ऑटोमोटिव बाजार को हिलाकर रख दिया. बताते हैं कि उस साल फोर्ड मोटर्स को सबसे बड़ा घटा हुआ था. कंपनी दिवालिया होने के कगार पर खड़ी थी. यह घाटा था 98 हजार करोड़ रुपयों का.

    दिवालिया होने से बचने के लिए पहले तो 2007 में फोर्ड ने अपनी लग्जरी कारों में शुमार एश्टन मार्टिन ब्रॉड को बेंच दिया. लेकिन कंपनी की हालत में सुधार नहीं हुआ. जिसके बाद फोर्ड ने जैगवार और लैंड रोवर ब्रांड्स को भी बेचने के लिए मार्केट में उतार दिया. कंपनी को लगा कि इन ब्रांड्स को बेचकर कंपनी को दिवालिया होने से बचाया जा सकता है. लेकिन फोर्ड को कहां पता था कि एक नई मुसीबत उसका इंतजार कर रही है. और यह नयी मुसीबत थी साल 2008 में अमेरिका में आर्थिक मंदी. इस मंदी ने सभी सेक्टर्स की कमर तोड़ दी थी.

    टाटा ने बेज्जती का लिया बदला

    फोर्ड को कैश की जरूरत थी और मंदी के दौरान कैश किसी के पास था नहीं. ऐसे में फोर्ड और टाटा मोटर्स का एक बार फिर आमना-सामना हुआ. इस बार जीत की बारी थी टाटा मोटर्स की. टाटा मोटर्स ने फोर्ड के ऑफर में दिलचस्पी दिखाई. जिसके बाद टाटा ने अपने रेप्रेज़ेंटेटिव्स को मार्केट सर्वे करने के लिए अमेरिका भेजा. टाटा ने ग्राहकों और डीलरों से बात की. इस सर्वे से उन्हें पता चला कि डीलर और ग्राहक, दोनों के बीच अभी भी लैंड रोवर और जैगुआर की पहचान कायम है.

    इसके बाद टाटा मोर्टस ने फोर्ड के साथ डील पक्की की. और 2 जून 2008 में फोर्ड से लैंड रोवर और जैगवार, दोनों ब्रांड्स को खरीद लिया. इस डील के तहत टाटा को जैगुआर और लैंड रोवर की UK और ब्राजील वाली फैक्टरी, साथ ही दोनों ब्रांड्स के डिजाइन स्टूडियो भी मिल गए. इतना ही नहीं, इंजन और गाड़ी के बाकी सारे डिजाइन पेटेंट भी इस डील में शामिल थे. फोर्ड ने तब टाटा से कहा था कि आप इन्हें खरीद कर हम पर अहसान कर रहे हैं. 9 साल पहले जिस कम्पनी ने आपको नीचा दिखाया था, अब आपके भरोसे वो दिवालिया होने से बची.

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