ये कहानी है अपराध की दुनिया में एक ऐसे बेखौफ अपराधी की जिसके नाम से पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था. इस अपराधी से न सिर्फ पुलिस बल्कि बड़े-बड़े माफिया भी खौफ खाते थे. एक ऐसा अपराधी जो मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी लेने में नहीं हिचकता था. कई कोशिशों के बाद भी सूबे की पुलिस इस अपराधी को न पकड़ सकी. जिसके बाद इस अपराधी को पकड़ने के लिए यूपी में स्पेशल टॉस्क फोर्स (STF) का गठन किया गया. इस अपराधी का नाम था श्री प्रकाश शुक्ला. श्रीप्रकाश और उसके पास मौजूद एके-47 दहशत का दूसरा नाम था. बिजनेसमैन से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज. बस यही उसका पेशा और इन सबके बीच जो आया वह जिंदा नहीं रहा.
ये कहानी है 90 के दशक की. श्री प्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखरपुर के मामखोर गांव में हुआ था. वह अपने गांव का नामचीन पहलवान हुआ करता था. श्री प्रकाश ने 20 साल की उम्र में पहली बार अपराध की दुनिया में कदम रखा.
साल था 1993. कहा जाता है कि श्री प्रकाश शुक्ला ने अपनी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले लफंगे राकेश नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. इस घटना को अंजाम देने के बाद वह बैंकॉक भाग गया. कहा जता है कि, पैसे की तंगी के चलते श्री प्रकाश कुछ समय बाद भारत वापस लौट आया. श्री प्रकाश शुक्ला जब भारत वापस लौटा तो वह पहले से ज्यादा बेखौफ और खरतनाक बन गया था. वह अब अपराध की दुनिया में एक अलग पहचान बनाने की राह पर निकल पड़ा और बिहार में मोकामा के सुरजभान गैंग में शामिल हो गया. जिसके बाद धीरे धीर श्रीप्रकाश ने अपराध की दुनिया में अपना एंपायर बनाया और देश के कई राज्यों में गैरकानूनी धंधे करने लगा. श्रीप्रकाश शुक्ला 5 साल के अंदर एक के बाद एक वारदात को अंजाम देकर देश का मोस्टवांटेड अपराधी बन गया था.
श्री प्रकाश शुक्ला ने साल 1997 में यूपी की राजधानी लखनऊ में बाहुबली राजनेता विधायक वीरेन्द्र शाही को गोलियों से भून दिया था. इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया. पुलिस प्रशासन श्री प्रकाश को पकड़ने के लिए प्लान तैयार करने लगा. कई कोशिशों के बाद पुलिस को श्री प्रकाश की लोकेशन का पता चला. श्री प्रकाश के साथ पुलिस का पहला एनकाउंटर 9 सिंतबर 1997 को हुआ. पुलिस को खबर मिली कि श्री प्रकाश किसी काम से लखनऊ की जनपथ मार्केट आने वाला है. पुलिस ने चारों और से घेराबंदी कर दी. पुलिस और श्री प्रकाश के बीच हुए एनकाउंटर के दौरान श्री प्रकाश वहां से भागने में कामयाब हो गया. यूपी पुलिस का यह ऑपरेशन ना पूरी तरह से फेल हो गया बल्कि पुलिस का एक जवान भी शहीद हो गया.
साल 1998, श्री प्रकाश के बढ़ते आतंक को लेकर सूबे की राजधानी लखनऊ स्थित सचिवालय में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की बड़ी बैठक हुई. जिसमें श्री प्रकाश के खात्मे के लिए स्पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई. जिसके बाद 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने सूबे के पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (STF) का गठन किया. इस फोर्स का सिर्फ एक ही मकसद था श्री प्रकाश शुक्ला (जिंदा या मुर्दा).
एक तरफ जहां यूपी पुलिस और STF श्री प्रकाश के खात्मे का खाका तैयार कर रही थी. वहीं श्री प्रकाश अपराध की दुनिया में एक अलग ही किताब लिख रहा था. श्रीप्रकाश शुक्ला को खौफ की दुनिया में असली शौहरत बिहार के मंत्री हत्याकांड से मिली. श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था. श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया और एके-47 राइफल से हत्याकांड को अंजाम देकर फरार हो गया.
देश में बिहार के मंत्री हत्याकांड की आग अभी बुझी भी नहीं थी कि तभी उत्तर प्रदेश पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पूरी उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथ पांव फूल गए. श्री प्रकाश शुक्ला अब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या का प्लान तैयार कर रहा था. उसने सीएम की हत्या के लिए 6 करोड़ की सुपारी ले ली थी. यह खबर यूपी पुलिस और STF के लिए बम गिरने जैसी थी. इस खबर के बाद STF की पूरी टीम हरकत में आई और श्री प्रकाश को पकड़ने के लिए छापेमारी शुरू कर दी. कुछ ही दिनों में उसकी लोकेशन का पता लगा लिया गया.
बताते हैं कि, श्रीप्रकाश शुक्ला की एक प्रेमिका भी थी जो दिल्ली में रहती थी. श्रीप्रकाश शुक्ला मोबाइल से उससे बात करता था. एसटीएफ को इस बात की जानकारी हो गई थी. STF ने उसकी प्रेमिका का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाया था. जिसकी भनक STF ने श्रीप्रकाश को नहीं लगने दी. 22 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश शुक्ला अपने दो साथियों के साथ दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. सूचना मिलते ही श्रीप्रकाश के खात्मे का प्लान तैयार हो गया. श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ कि STF उसका पीछा कर रही है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया. श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. श्रीप्रकाश ने 14 गोलियां STF पर दागीं, जवाब में एसटीएफ की टीम ने 45 गोलियों में श्री प्रकाश और उसके दोनों साथियों का काम तमाम कर दिया. तारीख थी 22 सितंबर 1988 समय सवा दो बजे.